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सहेजिए मासूम मुस्कुराहटों का इंद्रधनुष | डॉ. मोनिका शर्मा | Save the rainbow of innocent smiles | Dr. Monika Sharma

सहेजिए मासूम मुस्कुराहटों का इंद्रधनुष

 

माता-पिता के रूप में अपने बच्चों को बीते को भूल आगे की सोच की सौगात दें। खुश रहने और खुशियां बांटने वाले बच्चे कभी अकेले नहीं पड़ते। बता रही हैं जानी-मानी लेखिका।

 

माता-पिता बनने के बाद हर इंसान, हर चीज बच्चों के भविष्य और खुशहाली की सोचकर ही जुटाता है। पर असल में खुशियां हैं क्या? नई पीढ़ी के लिए सुविधाओं का अंबार ही खुशहाल होने की गारंटी नहीं हो सकता। हैपीनेस को लेकर सामने आया एक रिसर्च बताता है कि खुशी में बाहरी फैक्टर महज 10 फीसदी भूमिका निभाते हैं, जबकि 90 फीसदी खुशी खुद इंसान पर निर्भर है। अहम बात यह कि आप कितने खुश हैं, यह इस पर भी निर्भर करता है कि आपके पेरेंट्स कितने खुशमिजाज थे। दरअसल, खुशी की जो 90 फीसदी निर्भरता अपने आप पर है, उसका 50 फीसदी हमें अपने पेरेंट्स से जींस के रूप से मिलता है, जबकि 40 फीसदी  हम अपनी मेहनत और विशेष प्रयासों से हासिल करते हैं। रिसर्च यह भी कहता है कि इन खुशियों का हमारी जमीन-जायदाद या उपलब्ध सुख-सुविधाओं से कोई लेना-देना नहीं है। यही वजह है कि अगर आप अपने बच्चों को  खुशमिजाज बनाना चाहते हैं तो खुद खुशमिजाज रहकर उन्हें एक खुशगवार जिंदगी की विरासत उनके नाम लिखें। यह धन अनमोल है। इसे जुटाने के लिए छोटी छोटी बातों से जुड़ी समझ को बचपन का हिस्सा बनाइए। खुशी के ये आसान फॉर्मूले बच्चों की पर्सनैलिटी का हिस्सा गए तो हर हाल में खुशियों की अमीरी बनी रहेगी।

हार-जीत दोनों स्वीकारें

जिंदगी में सबसे ज्यादा दुःख देने वाली बात आमतौर पर यही होती है कि कुछ मनचाहा न हुआ हो। ऐसे में बच्चों को इस बात से रू-ब-रू करवाएं कि वे जीत ही नहीं हार को भी स्वीकार कर सकें। सफल होने पर खुशी की सकारात्मक दस्तक को महसूस कर सकें तो असफल होने पर किसी और की खुशी को सेलिब्रेट करने और खुद को संभालने का जज्बा भी रखें। बच्चों को घर से लेकर स्कूल और खेल के मैदान तक जिन्दगी में होने वाली हर घटना को पॉजिटिव ढंग से लेना सिखाएं। उनका यह समझना जरूरी है कि हर उतार-चढाव़ के साथ कोई ना कोई बेहतरी जरूर जुड़ी होती है। जिन्दगी के हर रंग को जीते हुए कोशिश यह रहनी चाहिए कि हमेशा कुछ न कुछ करते जाना है। नतीजे में कभी सीख मिलेगी तो कभी सफलता। यानी जो हैं, जैसे हैं खुद को सही दिशा में बढात़े जाना है। विशेषज्ञों का भी मानना है कि खुश रहने के लिए आप जो हैं, वही बने रहें।

बच्चों के मन में यह बात शुरुआत से ही घर कर जाए तो अच्छा है कि उन्हें दूसरों की खुशी के लिए खुद को नहीं बदलना है। बच्चों को रोबोट बनने की बजाय यह सिखाएं कि अपनी खुशियों की चाबी खुद के पास रखें। किसी और के रिमोट कंट्रोल से उनका जीवन न चले, बल्कि उन्हें अपनी खुशी और समझ से अपने आप को बेहतर बनाना है। ऐसा बिहेवियर सही मायने में उनके मन को संतुष्टि देगा। अपने-के प्रति लगाव पैदा करेगा। जिसके बिना कोई खुश नहीं रह सकता।

नकारात्मकता से दूरी

कई बार देखने में आता है बच्चों में कम उम्र में ही बुराई, इर्ष्या, गुस्सा और बदला लेने की भावना डेरा जमा लेती है। पेरेंट्स को चाहिए कि उन्हें समय रहते इस नेगेटिविटी से बाहर निकालें। ऐसी नकारात्मकता जिन्दगी की हर खुशी छीन लेती है। मन का सुकून और दूसरों के प्रति सम्मान सिरे से गायब हो जाता है। बच्चों को यह जरूर समझाएं कि दुनिया के हर इंसान में अच्छी-बुरी बातें और आदतें  होती ही है। इसलिए आप किसी के व्यक्तित्व से क्या सीखते हैं, उसे किस तरह देखते हैं, यह आपके अपने नजरिए पर निर्भर करता है। यह जिंदगी को खुशियों से भरने वाला सुंदर फॉर्मूला है कि वे हर किसी से अच्छी बातें सीखने और आत्मसात करने की कोशिश करें। नेगेटिविटी से दूर रहने वाले लोग नाकामयाबी या डिप्रेशन से भी जल्दी उबरते हैं। वे हार मानकर रुकते या थकते नहीं, बल्कि परेशानियों से जूझकर आगे बढ़ने की हिम्मत रखते हैं।

यही वजह है कि बच्चों को छोटी उम्र से ही पॉजिटिव सोच और व्यवहार को अपना साथी बना लेना चाहिए। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सकारात्मक लोग हर परिस्थिति में जीने की वजह तलाश लेते हैं। उम्मीदों के साथ जीने की यही चाह खुशियां पाने और आगे बढ़ते जाने का हर हाल में काम आने वाला फॉर्मूला है।

भूलो और आगे बढ़ो

भविष्य में क्या होने वाला है इसकी चिंता करने के बजाय बच्चों को अपने आज की छोटी-छोटी खुशियों को जीने की सीख दें। उन्हें अपने आने वाले कल को भूलकर आज को खुशहाल बनाने की बात कहें। अगर कोई गलती हुई है या किसी मोर्चे पर पीछे रह गए हैं तो अफसोस करने के बजाय उन बातों को भूलकर आगे बढ़ने का जज्बा जगाएं। ऐसा होने पर ना केवल उनकी ऊर्जा खुद को आगे के हालतों के लिए तैयार करने में लगती है, बल्कि उनके दिल पर गलतियों और असफलताओं का बोझ भी नहीं रहता। यह खुशहाल जिंदगी की नींव है कि कि बच्चे हर हाल में खुशी को चुनें और बढे चलें। यह सीख उनकी परवरिश का हिस्सा होनी चाहिए। बच्चों को पढाई़ या जीवनशैली को लेकर दूसरों से तुलना करने से भी बचने की सलाह दें। हौसले के साथ आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि वे अपने दिल की सुनें। खुद को कभी कमतर न आंकें।

बच्चों को शुरुआती पडाव़ पर ही बीते को भूल आगे की सोच की सौगात दें। मन की बेचैनी और व्यवहार की नकारात्मकता के इस दौर में आज को संवारने और बीती बातों को भूलने की सीख उनका जीवन खुशियों से भर देगी। मन का सुकून और मस्तिष्क का ठहराव आज सबसे बडा ़धन है।

खुशियां बांटना सिखाएं

किसी को खुशी देना खुश रहने का सबसे सुंदर फॉर्मूला है। बच्चों को सिखाएं कि वे किसी जरूरतमंद की सहायता करें। बुजुर्गों की मदद करें, उनका सम्मान करें। दूसरों में कमियां देखने के बजाय उनमें अच्छाइयां खोजें और उनकी तारीफ करें। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि खुशी असल में सुविधाओं और चीजों में नहीं, बल्कि हमारी आदतों में होती हैं। हमारी अच्छी आदतें औरों को भी खुश करती हैं और हमें भी संतुष्टि और सुख देती हैं। यह माना जाता है कि खुश रहने और खुशियां बांटने वाले लोगों का सपोर्ट सिस्टम बहुत अच्छा है। इसीलिए वे कभी अकेले नहीं पड़ते। सकारात्मक सोच और हंसमुख व्यवहार से सभी के दिल में उनकी खास जगह बनती जाती है। उनका सोशल जुडाव़ अच्छा होता है, जो भरोसा बढात़ा है। अपने रिश्तों में आपका विश्वास और आपसे जुड़े लोगों के दिल में आपके प्रति भरोसा होना, खुशियों को कई गुना बढा देता है।

स्मार्ट गैजेट्स के इस दौर में बच्चों को सामाजिक बनाएं। हंसी-खुशी सबसे बात करने की सीख दें। खुद अपने आप तक सिमटकर जीने की संस्कृति जिन्दगी को एक वर्चुअल खुशी से जोड़ रही है। जिसके असल कोई मायने ही नहीं हैं। इसीलिए असली दुनिया के लोगों से जुड़कर बच्चे खुशियां बांटें और खुशहाल रहें।

डॉ. मोनिका शर्मा

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