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सिनेमा में राम कथा | प्रदीप सरदाना | Ram Katha in Cinema | Pradeep Sardana

सिनेमा में राम कथा

 

रामानन्द सागर ने ‘रामायण’ सीरियल के माध्यम से छोटे पर्दे को राममय किया। राम और रामायण विषय पर बड़े पर्दे भी कुछ कालजयी फिल्में हैं। इनकी जानकारी दे रहे हैं जाने-माने पत्रकार ।

 

हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। भगवान राम की कथा को महर्षि बाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास से लेकर विभिन्न संत अपने-अपने ढंग से कहते आए हैं। हमारे फिल्मकार भी पिछले 100 बरसों से भी अधिक समय से राम कथा को सिनेमा के रुपहले पर्दे पर दिखाते आ रहे हैं।

इतना ही नहीं, जब 1980 के दशक में देश में टीवी क्रान्ति आई, तब रामानन्द सागर जैसे फिल्मकार ने ‘रामायण’ को सीरियल के रूप में बनाया, ऐसा प्रयोग किया कि बड़े पर्दे के साथ छोटा पर्दा भी राममय हो गया। 1987 में दूरदर्शन पर प्रसारित उनके ‘रामायण’ सीरियल ने तो लोकप्रियता का ऐसा इतिहास रचा कि विश्व के करीब 60 देशों ने इसका प्रसारण किया।

कोरोना काल में यही ‘रामायण’ टीवी पर फिर से आई तो 35 साल बाद तो इसने सर्वाधिक देखे जानेवाले धार्मिक सीरियल का अद्भुत आयाम बनाया। सीरियल में राम, सीता, लक्ष्मण और रावण बनने वाले कलाकार अरुण गोविल, दीपिका, सुनील लहरी और अरविंद त्रिवेदी फिर से स्टार बन गए।

इधर सिनेमा की बात करें तो देश में मूक सिनेमा के दौर में ही फिल्मकारों ने राम कथा को पर्दे पर दिखाना आरंभ कर दिया था। ‘राम जन्म’, ‘राम बनवास’, ‘रामायण’ और ‘राम-रावण युद्ध’ जैसी कई फिल्में सिनेमा के मूक दौर में आईं। जब 1931 में भारत में सवाक फिल्मों का निर्माण आरंभ हुआ तो 1933 में कोलकाता के मदन थिएटर्स ने ‘रामायण’ फिल्म बनाकर इसकी शुरुआत की। उसके बाद रामायण पर फिल्म बनाने का सिलसिला ऐसा चला कि आज भी जारी है। अभी तक लगभग 200 फिल्में रामायण और इसके विभिन्न मुख्य पात्रों पर बन चुकी हैं। जैसे ‘रामलीला’, ‘राम विवाह’, ‘राम दर्शन’, ‘राम प्रतिज्ञा’, ‘राम लक्ष्मण’, ‘सीता स्वयंवर’, ‘सीता हरण’, ‘जय हनुमान’, ‘राम भक्त हनुमान’, ‘राम भक्त विभीषण’, ‘भरत मिलाप’, ‘हनुमान जन्म’ और ‘हनुमान विजय’।

देखा जाए तो रामायण पर बनी अधिकतर फिल्में सफल होती रही हैं। कुछ कम तो कुछ ज्यादा। बस कुछेक फिल्में ही राम कथा पर ऐसी रहीं, जिन्हें दर्शकों ने सिरे से नकार दिया। जैसे पिछले दिनों आई फिल्म ‘आदिपुरुष’ जिसे रामायण पर बनी सबसे घटिया और बेकार फिल्म के रूप में याद किया जाएगा। इसमें भगवान श्रीराम और हनुमान जी सहित पात्रों का चित्रण और संवाद ऐसे हैं, जिनसे हमारे आराध्य की छवि धूमिल हुई है। जबकि कुछ फिल्में ऐसी भी हैं जो बरसों बाद आज भी सराही जाती हैं। जिनमें कुछ फिल्में तो कालजयी बन गई हैं। आइए, आपको बताते हैं कुछ ऐसी खास फिल्मों के बारे में, जिनमें कही राम कथा दर्शकों के दिलों में उतर गयी।

कालजयी फिल्में

राम राज्य: इस फिल्म का निर्माण 1943 में हुआ था। निर्देशक विजय भट्ट की ‘राम राज्य’ वाल्मीकि द्वारा ‘रामायण’ महाकाव्य लेखन कार्य के पूर्ण होने से शुरू होती है। राजा राम को जब यह बात पता लगती है तो वे कहते हैं रामायण अभी पूर्ण नहीं हुई, क्योंकि तभी राजा राम प्रजा द्वारा सीता के लंका प्रवास के दौरान उनकी पवित्रता को लेकर उठे प्रश्न के चलते, उनके त्याग और वनवास का निर्णय ले चुके होते हैं। फिल्म देवी सीता के वाल्मीकि आश्रम प्रवास, लव-कुश जन्म, अश्वमेघ यज्ञ और राम और लव-कुश मिलन के बाद सीता के धरती में समाने पर समाप्त होती है। कुल मिलाकर फिल्म राजा राम के एक अवधि के राज-काज को दर्शाती है। फिल्म में राम जन्म और राम वनवास तथा राम-रावण युद्ध का चित्रण नहीं है। फिर भी यह फिल्म उस दौर में इतनी सफल हुई कि 88 सप्ताह चलती रही। फिल्म में राम, सीता और लक्ष्मण की भूमिका में प्रेम अदीब, शोभना समर्थ तथा उमाकांत थे। यह फिल्म दो और कारणों से भी याद की जाती है। एक इसलिए कि यह पहले भारतीय फिल्म थी, जिसका अमेरिका में प्रीमियर हुआ था। दूसरा इसलिए भी कि महात्मा गांधी ने अपने जीवन में बस एक यही भारतीय फिल्म देखी थी।

सम्पूर्ण रामायण: इस फिल्म का निर्माण बसंत पिक्चर्स के बैनर से होमी वाडिया ने किया था। 1961 में प्रदर्शित इस फिल्म के निर्देशक तकनीक के शहंशाह बाबूभाई मिस्त्री थे। फिल्म में राम की भूमिका महिपाल और सीता की भूमिका अनिता गुहा ने निभाई थी, जबकि ललिता पवार कैकेई बनी थीं। सुलोचना, अचला सचदेव, पॉल शर्मा, बद्री प्रसाद, हेलन, बीएम व्यास और गोपीकृष्ण अन्य प्रमुख कलाकारों में थे। यूं फिल्म का नाम ‘सम्पूर्ण रामायण’ है, लेकिन इस फिल्म की कथा सीता-स्वयंवर से होती है। उसके बाद राम वनवास, सीता हरण, राम रावण युद्ध और फिर राम राज्याभिषेक से होते हुए सीता-वनवास, लव-कुश जन्म और सीता के धरती में समाने पर समाप्त होती है। रंगीन युग की शुरुआत में इसे गेवा कलर में बनाया था। वसंत देसाई ने संगीत दिया था। लेकिन फिल्म में सभी प्रसंग जल्दी-जल्दी और सक्षेप में दिखाना कुछ दर्शकों को रास नहीं आया था।

राम राज्य: यह फिल्म 1943 में बनी ‘राम राज्य’ का ही रंगीन संस्करण थी। निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट ने ही इसे पुरानी पटकथा-संवादों के साथ बनाया था। लेकिन यह पहली ‘राम राज्य’ से अधिक खूबसूरत थी। इसका एक कारण फिल्म के रंगीन होने के साथ, फिल्म में कनु देसाई का कला निर्देशन था। देसाई ने उस दौर में अयोध्या महल के सेट बहुत ही भव्य बनाए थे। फिर प्रवीण भट्ट ने इसका छायांकन भी बहुत सलीके से किया था। जनवरी, 1967में प्रदर्शित इस ‘राम राज्य’ में अभिनेता कुमार सेन ने राम की भूमिका भी बहुत अच्छे से की। जबकि सीता की भूमिका में प्रसिद्ध  नायिका बीना राय थीं। बद्री प्रसाद, कन्हैया लाल और वेद पुरी अन्य प्रमुख भूमिकाओं में थे। इस सबके साथ वसंत देसाई का संगीत और भरत व्यास के गीत भी फिल्म के आकर्षण थे। लता, रफी, मन्ना डे, आशा भोसले के साथ उषा टिमोथी के सुरों में हृदय स्पर्शी गीत रहे।

बजरंगबली: ‘ हे मारुति, सारी राम कथा का सार तुम्हारी आंखों में’-दिग्गज गीतकार प्रदीप के गीत की ये पंक्तियां, भगवान राम के उस प्रसंग का स्मरण कराती हैं, जिसमें उन्होंने हनुमान से कहा था कि हर राम कथा में तुम मौजूद होगे। 1976 में प्रदर्शित यह फिल्म बजरंगबली की कथा के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा भी दिलचस्प ढंग से कहती है। निर्माता-निर्देशक चन्द्रकान्त की यह फिल्म ‘बजरंगबली’ और ‘जय बजरंगबली’ दोनों नाम से जानी जाती रही है। फिल्म में राम की भूमिका अभिनेता विश्वजीत ने की थी और सीता की मौसमी चटर्जी ने, जबकि हनुमान का चरित्र दारा सिंह ने निभाया था। दारा सिंह ने इस फिल्म में हनुमान का किरदार इतने शानदार ढंग से किया था कि इसके दस साल बाद जब रामानंद सागर ने ‘रामायण’ सीरियल या उसके बाद बी‧आर‧ चोपडा ़ने ‘महाभारत’ सीरियल बनाया तो दोनों सीरियलों में हनुमान के रूप में दारा सिंह को ही लिया। प्रेम नाथ इसमें रावण बने थे और शशि कपूर लक्ष्मण। शशि कपूर यहां जमे नहीं। साथ ही मौसमी का शुद्ध हिंदी का उच्चारण भी काफी अशुद्ध था। फिल्म कुल मिलाकार एक अच्छी फिल्म थी। फिल्म में शुरू में तो थोड़ी हनुमान कथा है, जबकि राम कथा तब शुरू होती है जब राम और लक्ष्मण सीता अपहरण के बाद, उन्हें खोजते हुए शबरी से मिल, सुग्रीव के पास पहुंचते हैं। कथा का समापन राम की जल समाधि पर होता है। इस फिल्म का एक प्रबल पक्ष इसका गीत-संगीत भी है। प्रदीप ने ‘हे राम तेरे राज में कैसे जिएं सीताएं’ और ‘हे मर्यादा पुरुषोत्तम, तुमने मर्यादा क्यों तोड़ दी’ जैसे गीत लिखकर राम कथा के सीता-परित्याग की पूरी व्यथा कथा कह दी थी।

लव-कुश: 1997 में आई यह फिल्म ‘उत्तर रामायण’ पर आधारित थी। फिल्म की कथा, वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर भगवान राम के राज्याभिषेक से शुरू होती है। फिल्म का अंत लव के राज्याभिषेक और राम-सीता के, बैकुंठ में विष्णु और लक्ष्मी के रूप में मिलन पर होता है। इस फिल्म में अभिनेता जितेंद्र पहली बार पर्दे पर राम बनकर आए तो जयाप्रदा ने दूसरी बार सीता का रूप बहुत अच्छे से धरा। इससे पहले जया 1976 में तेलुगू फिल्म ‘सीता कल्याणम’ में सीता बन चुकी थीं। दिलचस्प यह था कि इस फिल्म में दारा सिंह चौथी और अंतिम बार हनुमान बने। ‘रामायण’ सीरियल के राम यानि अभिनेता अरुण गोविल इस फिल्म में लक्ष्मण बने थे। प्राण वाल्मीकि के अवतार में थे। लव की भूमिका मास्टर बालादित्य ने और कुश की भूमिका बेबी श्रेष्ठा ने निभाई थी। फिल्म में भूदेवी के रूप में अरुणा ईरानी ने भी एक छोटी भूमिका की थी। ‘लव-कुश’ अपनी भव्यता के लिए भी याद आती है। फिल्म का गीत ‘राम राज आयो रे’ की भव्यता तो आज भी याद हो आती है।

 

प्रदीप सरदाना

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