कहीं बला न बन जाए चर्मरोगों का यह इलाज!
आपकी त्वचा बहुत संवेदनशील है। बिना विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह के, सोचे-समझे बगैर क्रीम आदि से चर्मरोगों के इलाज की कोशिश से आपको लेने के देने पड़ सकते हैं।
प्रियंका मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के निकट एक ग्रामीण इलाके में ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा थी। उसे इस उम्र में होने वाले कील-मुहांसों से बहुत परेशानी हो रही थी। वह हर थोड़े दिन में कभी अपने पिता, कभी मां या बड़े भाई से आग्रह करती थी कि उसे किसी डॉक्टर को दिखा दें, वरना उसके चेहरे पर गड्ढे या निशान बन जाएंगे। पर समय एवं पैसों के भाव में परिवार वाले उसकी समस्या को दरकिनार करते रहे। फिर एक दिन एक सहेली ने उसे पास की दवा की दुकान से एक क्रीम लेने का सुझाव दिया। कुछ ही दिनों में उसे अपनी समस्या में सुधार दिखने लगा। अगले कुछ महीने वह बार-बार इस दवा का उपयोग करती रही, परन्तु अब उसकी समस्या ठीक होने की जगह बढ़ने लगी। उसके चेहरे के पास हल्के बाल आने लगे और चेहरे की त्वचा बहुत संवेदनशील हो गई।
कोमल भोपाल शहर से इंजीनियरिंग फाइनल ईयर की छात्रा थी। कई बार घरवालों ने उसकी शादी के लिए रिश्ता देखे, पर सांवले रंग के सामने उसकी योग्यता भी हार जाती थी। लगभग छह लड़के वालों के इनकार के बाद उसने सांवले रंग को ही अपनी समस्या मान लिया और होस्टल के पास के एक पार्लर में इसके समाधान के लिए चली गई। वहां उसने कुछ फेशियल करवाए और बिना लेबल वाली क्रीम लेकर घर आ गई, जो उसे रोज रात को लगानी थी। बिना सवाल-जवाब किए कि उस क्रीम के अंदर क्या है वह यह क्रीम महीनों लगाती रही। शुरू के कुछ दिन उसे काफी फायदा भी हुआ, मगर कुछ समय के बाद उसके चेहरे पर जलन होने लगी, वह लाल पड़ने लगा और उस पर पतले-पतले बाल भी आने लगे। अब धूप में जाने पर और रसोई में गैस के सामने खड़े होने पर भी उसका चेहरा जलता और लाल हो जाता था। अब वह पूर्ण रूप से इस दवा पर निर्भर हो गई थी। जैसे ही वह उसे लगाना छोड़ती, उसकी त्वचा पहले की तुलना में चार गुना सांवली हो जाती।
अभिषेक बेंगलुरू शहर की एक आई‧ टी‧ कंपनी में रोज 12-14 घंटे नौकरी करता था। लगातार बैठे रहने के कारण उसे बार-बार जांघों पर रैशेज होने लगे। इसे छोटी सी समस्या मान कर उसने पास की एक मेडिकल शॉप से दाद-खाद खुजली की एक क्रीम ले ली। वह थोड़े दिन इसे लगाता तो उसके रैशेज कम हो जाते। कुछ महीनों तक लगातार उस दवा के प्रयोग के बाद अब वह पूर्ण रूप से उसका आदी हो चुका था। एक बार जब वो ऑफिस के काम से एक महीने के टूर पर बाहर गया था तो दवा ले जाना भूल गया और लौटने पर उसने पाया की उसकी बीमारी 10 गुना ज्यादा गंभीर रूप ले चुकी थी। रैशेज अब बढ़कर शरीर के दूसरे भागों पर भी फैलने लगे थे।
झोलाछाप डॉक्टरों से सावधान
उपरोक्त कहानियों में तीनों लोगों में एक बात समान थी। वह यह कि उन्होंने बिना किसी डॉक्टरी सलाह के अपने दोस्त, ब्यूटिशियन एवं दवा दुकानदार से सलाह ली और अनजानी दवाओं पर भरोसा किया। इन अनजानी दवाओं में भी एक बात कॉमन थी और वह थी इनके अंदर स्टेरॉयड का होना। आम तौर पर स्टेरॉयड क्रीम्स का सीमित उपयोग करके चर्मरोग विशेषज्ञ एक्जिमा और सोरायसिस जैसी बीमारियों का उपचार करते हैं। पर चूंकि स्टेरॉयड क्रीम हर बीमारी में शुरुआती फायदा देने में कारगर है, इसलिए इसका उपयोग सांवलापन दूर करने, कील-मुहांसों और फंगल इन्फेक्शन में भी कुछ झोलाछाप अज्ञानी डॉक्टर, ब्यूटिशियन एवं मेडिकल शॉप संचालक करते रहे हैं।
कैसी विडंबना है हमारे देश की, जहां छोटे शहरों मैं स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के अभाव के कारण मरीज झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज कराने को मजबूर हैं।
आखिर गलती किसकी? क्या उस दवा कंपनी की, जिसने ये स्टीरॉयड क्रीम्स बनाए या उस दवा दुकान संचालक की जिसने बिना किसी प्रेस्क्रिप्शन के दवा मरीज को दे दी, या उस मरीज ़की, जो डॉक्टर के अभाव में या समय के अभाव में बिना विशेषज्ञ की सलाह के इन क्रीम्स का उपयोग कर रहे हैं।
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डॉ‧ जे‧ एस‧ छाबडा़
