केन्या का हीरा: मसाई मारा
मसाई मारा केन्या का ऐसा अद्भुत जंगल है, जहां आप पक्षियों और वन्यजीवों की दुनिया में पूरी तरह खो से जाते हैं। लैंड क्रूजर की अधखुली छत से जो बेमिसाल दृश्य हमने देखे वे यादों में अमर हो गए हैं।
यहां सिलसिला उल्टा था। इन्सान लैंडक्रूजर रूपी पिंजड़े में और खूंख्वार पशु खुले में। माहौल में फिर भी भय नहीं। सब कुछ विस्मित करनेवाला‧‧‧ फुर्सत से चरते-विचरते शेर-शेरनी, चीते, जिराफ, जेब्रा, गेंडे, सियार, राइनो, हाथी, जंगली भैंसे, हिरनों की कई प्रजातियां, गिद्ध, बाज, विशाल घड़ियाल, मोहक पक्षी और‧‧‧ और भी बहुत कुछ। चौतरफा जादुई आसमान, पल-पल रंग बदलते बादल, काले-नीले कोहरे में खोए छोटे पर्वत और घास के विशाल मैदान‧‧‧ ऐसा अतुलित कुदरती सौंदर्य, जो आपके दिलो-दिमाग को निर्मल कर दे। कहीं कोई गंदगी, कूडा ़और छल कपट नहीं। सब कुछ शुद्ध। यह नजारा पूर्वी अफ्रीका के नैरोबी की गोद में मौजूद महावनों में हमें देखने को मिला। विशेष तौर पर मसाई मारा सफारी के दौरान, जहां के अपार सौंदर्य से अभिभूत होकर मैं लौटी हूं। वन्यजीवों को पढ़कर नये अनुभवों से स्वयं को समृद्ध बनाने की कोशिश में हूं। सचमुच, मसाईमारा केन्या का ‘अमूल्य हीरा’ है।
अफ्रीका के बारे में मेरे मन में एक प्रकार की छवि बनी हुई थी। यह कभी नहीं सोचा था कि दुनिया के इस हिस्से में वह सुंदरता छिपी है, जो आपको‧‧‧ आपके दृष्टिकोण को, आपके अंतर्मन को और आपके अहसास को समृद्ध बनाती है।
केन्या के नैरोबी में अनेक वन है, पर मसाई मारा ऐसा अद्भुत जंगल है, जहां आप पूरी तरह पक्षियों और वन्यजीवों की दुनिया में खो से जाते हैं। इन्हें देखने की बेताबी चरम पर रहती है। रोजाना नए दृश्यों का इंतजार रहता है। नैरोबी का लैंडस्केप, खासकर मसाई का आकाश और सूर्यास्त तो बेजोड़ है। नैरोबी से मसाई मारा तक के करीब 280 किलोमीटर के सफर में नैसर्गिक दृश्य हरियाले खेतों के साथ-साथ चलते है‧‧‧जीवंतता का बोध कराते हुए। हम बेसब्र सैलानियों ने लैंड क्रूजर की अधखुली छत से जो बेमिसाल दृश्य देखे उनमें से कुछ का बयान करना तो बनता है।
बेहिसाब मौज सफारी की
दृश्य 1 : कहानियों में ही सुना था चीते के बारे में! आज चार-पांच प्रत्यक्ष सामने थे। सड़क के किनारे बिल्कुल हमारी जीप से चार-पांच फुट दूर‧‧‧ शिकार किए किसी पशु की, शायद एंपाला नामक हिरण की बोटियां चबाने में मग्न। उन्हें परवाह नहीं थी हमारी उपस्थिति की। अनायास दो सियार वहां पहुंचे, उन्हें देखते ही मादा चीता तैश में आ गई। भागी पीछे‧‧‧ और तड़ीपार कर दिया। लौटकर फिर बोटियां चबाने में मग्न हो गई। तभी एक-एक करके दर्जनों गिद्धों का काफिला वहां आ पहुंचा। चीतों के पास जाने उनकी हिम्मत नहीं थी, सो थोड़ी दूर खड़े होकर वे उनके चले जाने का इंतजार करने लगे‧‧‧ बचा हुआ शिकार मिलने की आस में लीडर के पीछे सावधानी से एक-एक कदम आगे बढात़े हुए। पर दुबारा लौटे सियार और बाज जैसे दिखनेवाले बड़े गिद्धों ने उनकी दाल गलने नहीं दी। शेष भोजन लेकर वे भाग गए।
दृश्य 2: एक शेरनी झाड़ी में छिपी हुई है शिकार की ताक में घात लगाकर! उससे थोड़ी दूर उसके पांच-छह बच्चे मजे से आपस में खेल रहे हैं। मीलों तक कोई नहीं, सिर्फ हमें छोड़कर! सर्वत्र शांति और सूनापन।
दृश्य 3: एक शेर हरी घास में बैठा बाहर झांकता‧‧‧ देखते ही देखते पीठ के बल सो गया। बार- बार करवट बदलता, पेट से सांस लेता, पर जागने का नाम नहीं‧‧‧ हम सांस रोककर उसके उठने का इंतजार करते रहे, पर वह उन्हें खुश करने को राजी नहीं हुआ। आह भरते हुए हम रवाना हो गए। आखिर, जंगल का राजा है। रोब तो दिखाएगा ही!
दृश्य 4: दो जंगली भैंसे आपस में भिड़े हुए। हमारा ड्राइवर-कम-गाइड माइक बताता है, ‘झुंड का ताकतवर लीडर बूढ़े भैंसे को खदेड़ रहा है, ताकि वह उनके काफिले से दूर रहे। यहां बूढे ़भैंसे को अकेले रहने पर मजबूर किया जाता है।‧‧‧ बेचारा!
दृश्य 5: गैंडों और हाथी के झुंड बड़े सुकून से घास चबा रहे हैं। वे शेर-चीते, लकड़बग्घे या सियार से भयभीत नहीं दिखते, पर बाल – हाथी के संरक्षण के प्रति सतर्क हैं। प्रौढ़ हाथियों के बड़े-बड़े नुकीले दांत है। हम बाल गैंडे या बाल हाथी का शिकार करने की ताक में शेर के पहुंचने की बाट जोह रहे हैं, पर नहीं‧‧‧ आज शायद उनकी किस्मत बलवान है।
कई बार टीवी पर देखे ऐसे अनेक विस्मयकारी दृश्य साकार होते जाते है मसाईमारा, सांबुरू वन और पजेता रैंच में। हर बार हर्षातिरेक में हम अपनी उम्र भूलकर जोरों से चीख उठते, ‘वो देखो शेर, वो देखो हिप्पो, चीता‧‧‧ सियार। मॉई गॉड, देखो कितनी शेरनियां‧‧‧ अपने बच्चों के साथ। जिराफ और जानें क्या-क्या और!
माइक हमें वन्यजीवों के बरताव, उनकी आदतों, उनके स्वभाव, उनकी विशेषताओं के बारे में बताता है। जानकर यह विचार मन में कौंधता है कि वाणी को छोड़ दें तो वे सारे भाव वन्यजीवों में भी मौजूद है, जो इनसान में होते हैं। मसलन चतुराई, वर्चस्व की लालसा, वासना, जिजीविषा,सतर्कता, अस्तित्व का संघर्ष, सब्र, फूर्ति, आलस्य, नियोजन, परिवार के संरक्षण की तीव्र भावना आदि। फर्क व्यक्त वाणी, जिज्ञासा और तेज दिमाग का है। मुझे वे मूक गण मासूम बिल्कुल नहीं लगे। हां, इतना जरूर लगा कि वे और हम दोनों भले एक-दूसरे से डरते हों, पर हैं तो इस बृहत्तर दुनिया का हिस्सा ही। वे भी अपनी दुनिया में हमारी तरह ही रहते हैं‧‧‧ कुछ प्यार‧‧‧ कुछ डर और कुछ उम्मीदों के साथ!
बहरहाल वन्यजीवों की तरह यहां पक्षियों को देखना भी कम लुभावना नहीं। बर्ड वॉचर के लिए बहुरंगी पक्षियों का नजारा दावत जैसा मालूम होता है। हर दूसरे पेड़ पर पक्षियों के सुंदर घोंसले अचरज जगाते हैं, हालांकि पेड़ विरल होते है। कहीं तो विस्तृत मैदान में एक अकेला पेड़ सुंदर पेंटिंग जैसा लगता है‧‧‧ पृष्ठभूमि में अनंत नीला आकाश।
मसाई मारा जीवों के ‘ग्रेट माइशन’ के लिए प्रख्यात है। यह ‘उत्सव’ जुलाई से अक्टूबर-नवंबर के बीच होता है। शेष काल ये ‘लोग’ मसाई में ही रहते हैं। बावजूद इसके उनका दर्शन होना भाग्य की बात है। अचरज इस बात का होता है कि आखिरी यहां बसे लाखों जीव छिपे कहां रहते हैं? वन भी सघन ऐसा नहीं कि देखा न जा सके। यह रहस्य बना है। नैरोबी सरकार द्वारा वन में जीवों की गणना नहीं की जाती। शायद संभव ही नहीं, अतः उनकी तादाद का अंदाज भी कोई नहीं बता पाता। माइग्रेशन के दौरान ही उनकी संख्या देखते बन पाती है।
विस्मयकारी इक्वेटर पॉइंट
सैलानी को देखते ही स्थानीय लोग-बाग ‘जांबो’ के संबोधन एवं मुस्कान के साथ स्वागत करते हैं। जांबो यानी ‘हैलो’। होटलों में रहने-खाने का प्रबंध बेहतरीन है। सफर के दौरान जगह-जगह सजी दूकानों में नैरोबी की विशेष वस्तुएं, खासकर नकली गहने और सजावट की वस्तुएं उपलब्ध होती है। मसाई मारा के एक ट्राइबल गांव के टूर में उनके जीवन, रीति-रिवाज, परंपरा, आदि जानने का अवसर भी मिलता है‧‧‧ उनके साथ नृत्य करने का आनंद भी। बलून राइड का अनोखा अनुभव पाने हो तो जेब ढीली करनी होती है। विस्मयकारी इक्वेटर पॉइंट भी है, जहां पृथ्वी के दक्षिण एवं उत्तर दोनों गोलार्ध में उपस्थित होने का अनुभव अर्जित करते हैं।
पुणे के दामले सफारी के निदेशक एवं प्रकृति प्रेमी अमोल दामले के साथ हमने यह अविस्मरणीय यात्रा की। मेरे पति दिलीप चावरे समेत हम 15 सैलानी थे। हर-एक ने केन्या के कुदरती जादू को महसूस किया, सराहा और खुद को समृद्ध पाया। अमोल और गाइडनुमा ड्रावर माइक हमें प्राणियों एवं पक्षियों के बारे में ऐसी सुक्ष्म जानकारी देते रहे कि अपने अज्ञान और बौनेपन का एहसास न हो तो आश्चर्य! जैसे वन्य जीवों में कौन अकेला रहना पसंद करता है, कौन समूह में ही घूमता है, कौन सोशल है, कौन शऊरदार, कौन खूंख्वार और कौन मासूम‧‧‧। कौन सहज और कौन असहज। कौन किसका और कैसे शिकार करता है या नहीं करता। यह भी कि किसमें असुरक्षा की भावना तीव्र होती है‧‧‧ कौन ताकतवर जीवों से भयभीत रहता है‧‧‧ उनसे बचने के लिए संघर्षशील। कौन कौन माइग्रेट करता है और क्यों?
मौका लगे तो आप भी हो आइए वन्यजीवों के इस सुंदर-सहज प्रदेश में!
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कुमुद संघवी चावरे
