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जो पहन लो, वही फैशन | रेखा बब्बल | Fashion is What You Wear It | Rekha Babbal

जो पहन लो, वही फैशन

जो करके मन को खुशी मिले वह फैशन कर लेना चाहिए। कुछ समझ में न आए तो अपना आत्मविश्वास ही पहनकर घर से बाहर निकलिए।

 

जब भी फैशन के बारे में सोचती हूं तो नानी की आंखों का सुरमा, दादी की बांहों पर बाजूबंद और गले में हार की शक्ल में गुदा गोदना (जिसे आजकल टैटू कहते हैं।), चाची की खूबसूरत साड़ियां और बुआ की बेलबॉटम के साथ बॉबी प्रिंट वाली कुर्ती सहसा याद आ जाती है।

फैशन का चक्र भी भी पृथ्वी के चक्र की तरह गोल-गोल घूमता रहता है, तभी तो गुजरे जमाने का फैशन लौट-लौट कर वापस आ जाता है। चाहे वह गहने, कपड़े, चप्पल, पर्स या हेयर स्टाल ही क्यों न हो। थोड़े से जोड़-तोड़ के साथ फैशन के स्वरूप को नया बनाए रखने की कोशिश हमेशा से की जाती रही है।

बोल्ड हो रहा है फैशन

सिनेमा और टीवी ने हमेशा से फैशन को प्रभावित किया है, चाहे वह साधना कट बाल हो, चूड़ीदार के साथ टाइट कुर्ती, शिफॉन की साड़ियां, जूड़े में खोंसा हुआ लाल गुलाब या फिर ऊंची एड़ी की सैंडिल। हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि जहां ‘कुमकुम’ साड़ी और ‘पार्वती’ बिंदी ने अनगिनत महिलाओं के दिलों में जगह बना ली थी, वहीं सीरियल ‘सांस’ में नीना गुप्ता के बिंदी लगाने का ढंग आज तक लोगों के जेहन में बसा है। मुझे लगता है कि गांव के लोगों को शहरी फैशन आकर्षित करता है और शहर के लोगों को ग्रामीण फैशन। यह कहना गलत होगा कि शहरी फैशन ज्यादा बोल्ड है। महाराष्ट्र में नऊवारी साड़ी के साथ पेटीकोट नहीं पहना जाता। मैंने बिहार में भी कई ग्रामीण महिलाओं को बिना पेटीकोट के साड़ी और गर्मियों में बिना ब्लाउज के साड़ी पहने भी देखा है। आज भी शहर के साथ-साथ राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में भी बैकलेस ब्लाउज पहनने की परंपरा यथावत है।

फैशन का स्वर्णिम दौर

जहां मुगल काल में जहांगीर की पत्नी नूरजहां को भारत की पहली फैशन डिजाइनर कहा गया, वहीं मशहूर फैशन डिजाइनर ऋतु कुमार का कहना है कि भारत के पहले फैशन डिजानर महात्मा गांधी थे। पूरा देश उनके लिए रैंप था, जिसके माध्यम से उन्होंने खादी को घर-घर पहुंचाया।

फैशन खुद को अभिव्यक्त करने का एक जरिया है। जैसा मूड, वैसा पहनावा, वैसा ही मेकअप, लेकिन यह भी सच है कि जरा सा प्रयास करके आप खराब मूड में भी अच्छी तरह तैयार होकर देखिए, आपका मूड एकदम से बदल जायेगा। मुझे लगता है आज फैशन का स्वर्णिम दौर चल रहा है, क्योंकि आज जो पहन लो, वही फैशन है। क्या पुरुष, क्या महिलाएं, जिसे जो अच्छा लग रहा है पहन रहा है, चाहे वह गहने हों या कपड़े। आपने पुरुषों को स्कर्ट, सलवार, हैरम, दुपट्टा और कई ऐसे वस्त्रों में देखा होगा, जो पहले सिर्फ  महिलाएं पहनती थीं। भारत में कुर्ता-पायजामा भी अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग शैली में पहना जाता है। भारत में सबसे ज्यादा पहनी जानेवाली साड़ी भी अब अलग-अलग अंदाज में पहनी जाने लगी है। मैचिंग ब्लाउज की टेंशन भी नहीं रही। अब तो छींटदार रंग-बिरंगे ब्लाउज, क्रॉप टॉप, टी शर्ट, लंबी कुर्ती और कॉलर वाली शर्ट आदि के साथ भी साड़ियां पहनी जाने लगी हैं, जो सुंदर भी लगती है और अलग भी। और तो और, जींस के साथ भी खूब साड़ियां पहनी जा रही हैं।

आज भारतीय फैशन दुनिया के लिए प्रेरणा बन चुका है। अगर भारत की बात करें तो मुंबई शहर को फैशन की रानी कहा जाता है, लेकिन मिजोरम की राजधानी आइजॉल पूरे भारत में फैशन की सबसे ज्यादा समझ रखनेवाला शहर है। यहां सिर्फ शहर ही नहीं, गांव के सामान्य घरों तक भी फैशन की झलक मिलती है। यदि विश्व की बात करें तो इटालियन शहर मिलान और जापान की राजधानी टोक्यो के साथ फ्रांस की राजधानी पेरिस दुनिया का सबसे फैशनेबल ठिकाना माना जाता है।

अचंभित कर देने वाले डिजाइन

पारंपरिक बनारसी साड़ियां हों या असमी, बंगाली, कांजीवरम, चंदेरी, बंधेज, शिफॉन, नेट, सिल्क या महाराष्ट्र की पैठणी-सबके रुतवे अलग हैं। पूरी दुनिया की नजर आज भारत पर है। भारतीय फैशन को लोकप्रिय बनाने में फैशन शोज का भी बहुत बडा ़हाथ है। आजकल तो अंदरूनी कपड़े, हीरे-पन्ने जड़े चश्मे, घड़ियां और बैग वगैरह के ऐसे-ऐसे डिजाइन आ गए हैं, जो कई बार हमें अचंभित कर देते हैं। पहले नजर से बचाने के लिए बच्चों को काला धागा पहनाया जाता था, अब नजर से बचने के लिए तरह-तरह के ब्रेस्लेट आ गए हैं। पहले सिर्फ नाक और कान छिदवाए जाते थे। अब तो जहां मन करे वहां छिदवा लो। वैसे जो करके मन को खुशी मिले वह कर ही लेना चाहिए।

आम तौर पर कहा जाता है कि वेस्टर्न कपड़ों के साथ बिंदी नहीं लगानी चाहिए और चूड़ियां नहीं पहननी चाहिए। मांग का सिंदूर और मंगलसूत्र भी दिखना नहीं चाहिए। अरे भाई, किसी व्यक्ति ने ही तो बनाए होंगे ये नियम? तो हमें जो अच्छा लगता है, वैसा करके हम भी तो नए नियम बना सकते हैं! एक फिल्म आयी थी ‘निल बटा सन्नाटा’ जिसमें रत्ना पाठक शाह के चरित्र ने पूरी फिल्म में जींस और शर्ट के साथ बड़ी सी बिंदी लगाई थी और खूब जंची भी थीं। मेरी एक दोस्त जींस और शर्ट के साथ दोनों हाथों में भर-भर के ऑक्सीडाज की चूड़ियां पहनती है और अब तो ये उसकी पहचान बन गई है। हनीमून कपल्स को अकसर आपने वेस्टर्न कपड़ों के साथ हाथों में भर-भरकर चूडा ़(सुहाग की चूड़ियां) पहने देखा होगा। मैं खुद वेस्टर्न ड्रेस के साथ भी बिंदी लगाती हूं। कहने का मतलब ये कि दूसरों के बनाए नियम फॉलो करने से बेहतर है कि आप खुद अपनी पसंद से अपने लिए नियम बनाएं और मस्त रहें।

अंत में उन लोगों की बात करूंगी जो कहते हैं कि हम फैशन को फॉलो नहीं करते। मेरा दावा है कि जब भी कोई फैशनेबल कपड़े पहनकर पास से गुजरता है तो उनकी नजर भी उस तरफ उठती जरूर है। मेरे ख्याल से फैशन का मतलब यह नहीं कि जो चलन में है, बिना सोचे-समझे आप वह पहन लें। चाहे रंग की बात हो या कट की, जो आपके फिगर के हिसाब से आप पर जंचे‧‧‧ जिसमें आप सहज महसूस करें, वही पहनिए, वरना आप हंसी के पात्र बन सकते हैं।

एक बात और। अगर कुछ समझ में न आए तो अपना आत्मविश्वास पहनकर घर से बाहर निकलिए। आप सबसे ज्यादा खूबसूरत लगेंगे।

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रेखा बब्बल

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