बचपन रखो जेब में | कालनिर्णय लेख

बचपन रखो जेब में

टीवी हमेशा की तरह चल रहा था । मैं देख भी रहा था, सुन भी रहा था, नहीं भी सुन रहा था । अचानक एक वाक्यांश कानों से टकराया । लगा जैसे वह कानों में थम गया । जैसे कोई मनपसंद चीज खाने के बाद देर तक उसका स्वाद मुंह में घुलता रहता है न , वैसे […]