बेटियों में मां
पिताजी अपना ध्यान रखिएगा’, यह अंतिम वाक्य होता है फोन की बातचीत का। वो कहते हैं, ‘तुम लोग के आशीर्वाद से ठीक ही हैं।’
एक समय बेटियां इस कदर बड़ी हो जाती हैं कि कोई भी बुजुर्ग उनमें अपनी मां को देखने लगे। हाथ जोड़ दे। बोले, ‘आती रहना। उम्र तभी बढ़ेगी, जब हमारी सर पर हाथ रखा करो। तुम ही अन्नपूर्णा हो। वही जो चावल बिखेर चली गई थीं तुम, उसी से आबाद है तुम्हारे पिता का घर।’
हम सर-चढ़ी बेटियां नहीं थे हम तो जमीन पर नजर गडाए़ रहते पिता के सामने। ‘जाओ, अपने पिताजी से कहो’, ऐसा कह अम्मा तसल्ली से भरी रहतीं कि क्या ही कहेगी यह।
पिताजी से नहीं कह पाई थी, पर अब कुछ भी कहूं, समय नहीं बदलेगा। शिकायत पर आहत होंगे पिता। यह भी नहीं सुनेंगे कि ‘पिताजी, कमल हसन जैसा लड़का खोजिएगा।’
हम औकात में रखे गए। वही होता गया जो होना था। वही भाग्य था। हम अच्छी औरत बनी छोटी लड़कियां कमर में साड़ी खोंस एकदम अम्मा बन गईं। सब खुश थे। आखिर, बेटी किसकी है। पता था कि परिस्थिति में सब संभाल लेगी। दुःख नहीं कहने वाली लड़कियां मायके की गुड बुक में रहीं और फिर बड़ी लड़कियों ने अपने हिस्से वाले पिता को गले लगाया। गाल थपथपाए। चिपक ही लिए दो मिनट को पिता की हथेली के नीचे। जान-बूझकर अपना सर रखे बूढ़ी हथेली में समय ने एक कंपन भर दिया है। पिता की आंखों में नदी से ज्यादा पानी। झुर्रियों वाले गाल पर उनके आंसू स्पीड ब्रेकर की तरह उतरते हैं।
हाथ क्यों जोड़ते हैं पिताजी? बस ऐसे बनी रहना। हमारी यात्रा बाधित है। तुम्हें ही आना होगा हमारे पास बार-बार। तभी जिंदा रहेगा तुम्हारा बाप।
हम लौट-लौट वहीं तो आएंगे। और कहां जाएंगे पिताजी…!
अधिक हिंदी ब्लॉग पढ़ने के लिए, हमारे ब्लॉग अनुभाग पर जाएँ।
शैलजा पाठक