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द्रौपदी- कुंती संबंध: सास-बहू संबंध का अनुठा प्रतिमान – डॉ. सुमित्रा अग्रवाल

 

महाभारत की नायिका द्रौपदी का संपूर्ण जीवन ही परंपराभंजक है | उसका जन्म होता है यज्ञ की ज्वाला में, वीर्यशुल्का होने पार भी विवाह होता है पांचों पांडवों से और जीवन का समापन होता है हिम की ठंडी ज्वलाओं में | इसी के साथ यह भी दृष्ट्व्य है कि द्रौपदी ने जो भी हार्दिक संबंध स्थापित किये हैं, वे सभी चली आती परंपरा का नवीन विकास है, जिनमें बिल्कुल अनूठा है अपनी सास कुंती के साथ स्थापित उसका अति आत्मीय संबंध | आज हमारे चारों ओर जब इस रिश्ते को केवल नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, तब द्रौपदी-कुंती संबंध रिश्तों का एक अनूठा उदाहरण बनकर हमारे सामने आ खडा होता है |

स्थापित परंपरा से परे जाकर स्वतंत्रचेता द्रौपदी अपने समवयस्कों के साथ ही अपने ज्येष्ठ संबंधियो के साथ भी आत्मीय संबंध स्थापित कर अपने सचेतन व्यक्तित्व का परिचय देती है | इनमें द्रौपदी-कुंती संबंध परंपरा की सारी जडता, एकसरता, रूढीग्रस्तता के परे जाकर एक नये क्षितीज का स्पर्श करते हैं | कौशल्या और सीता का संबंध सास और बहू का है, माता और पुत्री का है, परंतु द्रौपदी और कुंती का संबंध दो स्वतंत्र व्यक्तीत्वों का संबंध है, जिसमें पारंपारिक आदर और सामंजस्य की निराली छटा है | कुंती ने आजीवन अपने स्नेह की शीतल छाया द्रौपदी पर बनाए रखी है और द्रौपदी सदैव कुंती के समुख वधू बनकर रही, अपने विवाह से लेकर कुंती के वानप्रस्थ तक | द्रौपदी-कुंती संबंध परंपरा की चौखट के भीतर निर्मित हुए हैं, पर शीघ्र ही ये परंपरा के नवीन विकास के रूप में अपनी सहज परिणिति तक पहुंचे जाते हैं | इस आत्मीयता का एक बडा आधार उनके अंत: व्यक्तित्व की समान गठन भी है | अंत: जगत और बाह्राजगत की अनेक मुलभूत समानताओं के कारण भी इनमें प्रगाढता का समावेश हुआ | अनेक आत्मीय, तरल और गरिमापूर्ण संबंध आज भी प्रतिमानस्वरूप बने हुए हैं |

द्रौपदी और कुंती के संबंध का आरंभ उस विशिष्ट क्षण में हुआ जब राजकुमारी द्रौपदी स्वयंवर में कुंती के मधम पुत्र का वरण कर सास को प्रणाम करने आती है | उस समय कुंतीदेवी उसे प्रेमपूर्वक आशिर्वाद देते हुए कहती है – बेटी ! जैसे इंद्राणी इंद्र में, स्वाहा अग्नि में, रोहिणी चंद्रमा में, दमयंती नल में भद्रा कुबेर में, अरुंधती वशिष्ट में तथा लक्ष्मी भगवान नारायण में भक्तिभाव एवं रखती है, उसी प्रकार तुम भी अपने पतियों में अनुरक्त रहो | तुम अनंत सौख्य से संपन्न होकर दीर्घजीवी तथा वीरपुत्रों की जननी बनो | सौभाग्यशालिनी, भोगसामग्री से संपन्न, पति के साथ यज्ञ में बैठनेवाली तथा पतिव्रता | यहां यह उल्लेखनीय है कि कुंती के आदेश के पालन के फलस्वरूप द्रौपदी पांचों पांडवों की एकता बनाए रखने के लिए इन सबकी सहधर्मचारिणी बनी है | यह क्षण अत्यंत विलक्षण है, परंतु ये दोनों मनस्विनी स्त्रियां इस क्षण को आत्मसात कर एक नये क्षितिज की ओर अग्रसर होती हैं |

बारह वर्ष के वनवास के लिए प्रस्थान करने के पूर्व द्रौपदी माता कुंती से जब अनुमति लेने जाती है, तब उन क्षेत्रों के समरस अंतरंग की एक झलक  महाभारत कार ने दी है |

परम कुलीन, अनुपम सुंदरी तथा गुणवती द्रौपदी कुंतीदेवी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्रिय है | पुत्रलोक से पतिलोक को श्रेष्ठ समझने वाली द्रौपदी अपने पुत्रों को छोडकर कुंतीदेवी के पुत्रों के पीछे-पीछे वन में चली जाती है | यह बात कुंतीदेवी के संवेदनशील हृदय में समा जाती है | द्रौपदी का अपमान रात-दिन कुंती के हृदय को दग्ध करता रहता है | तेजस्विनी कुंती ने श्रीकृष्ण से जो कुछ कहा है, उसमें यह अनूठा संबंध अपनी समग्रता में प्रतिबिंबित हो उठा है – ‘जनार्दन ! द्रूपदकुमारी कृष्णा मुझे अपनी सभी पुत्रों से अधिक प्रिय है I वह कुलीन, अनुपम सुंदरी तथा सभी सदगुणों से संपन्न है | शत्रुदमन ! यह चौदहवां वर्ष बीत रहा है |

इतने दिनों से मैंने पुत्रों के विछोह से संतप्त हुई सत्यवादिनी द्रौपदी को नहीं देखा है | आगे वह यह भी कहती है कि द्रौपदी को सभा में लायी गयी देख जो दु:ख मुझे हुआ था, उससे बढकर महान दु:ख मुझे कभी नही हुआ | वह अपमान मेरे हृदय को दग्ध करता रहता है |

द्रौपदी और कुंती के हृदय किस प्रकार गर्भनाल सदृश बंध से जुडे हुए है, इसका एक सशक्त उदाहरण कुंती के धृतराष्ट्र और गांधारी के साथ वानप्रस्थ के लिए प्रस्थान करते समय दिखाई देता है | इस कठीण क्षण में उनके संबंधों की प्रगाढता ध्वनित होती है | सास को इस प्रकार वनवास के लिए जाती देख द्रौपदी के मुख पर भी विषाद छा जाता है | वह रोती हुई सुभद्रा के साथ कुंती के पीछे- पीछे जाने लगी | कुंती के वन में चले जाने पर भी द्रौपदी की कुंती विषयक चिंता में कोई अंतर नहीं आता | इन्हीं क्षणों में इन दोनों मनस्विनी नारियों की अंतिम भेंट होती है |

कुंती और द्रौपदी दोनों तेजस्विनी और निर्णायक क्षण की प्रतीक्षा करने वाली होते हुए भी धैर्यवान, सहनशील और संयमी हैं | कुंती की पांच नियोगजा संतानों को एक सूत्र में आबद्ध रखने के दायित्व का द्रौपदी आजीवन निर्वाह करती है | लोक में तो यह भी कहा जाता है कि पांडव चूंकि कुंती और पांच देवताओं की नियोगज संतान हैं, इसीलिए वे द्रौपदी से ऐसा अनूठा संबंध स्थापित कर सके हैं |

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डॉ. सुमित्रा अग्रवाल

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